". मृत्यु क्या है। शरीर से प्राण कैसे निकलते हैं। mrityu kya hai. sharir se pran kaise nikalta hai.What is death? How does the soul come out of the body? - Hindi me jane

मृत्यु क्या है। शरीर से प्राण कैसे निकलते हैं। mrityu kya hai. sharir se pran kaise nikalta hai.What is death? How does the soul come out of the body?

 मृत्यु क्या है। शरीर से प्राण कैसे निकलते हैं। mrityu kya hai. sharir se pran kaise nikalta hai.What is death? How does the soul come out of the body?





मृत्यु क्या है। शरीर से प्राण कैसे निकलते हैं। mrutyu kya hai. sharir se pran kaise nikalta hai.What is death? How does the soul come out of the body?


नमस्कार दोस्तों आज हम बात करने जा रहे हैं मृत्यु क्या है शरीर से प्राण कैसे निकलती है इसके बारे में आज हम चर्चा कर करते हैं


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मृत्यु कैसे होती है.

 ऐसे लोग जब मृत्यु के समय यम दूतों को देखते हैं तो घबरा जाते हैं और उनके प्राण नीचे की ओर सरकने लगते हैं. इसके बाद प्राण वायु नीचे के मार्ग से निकल जाती है. प्राण वायु के साथ अंगूठे के आकार का एक अदृश्य जीव निकलता है. यमराज के दूत उसके गले में पाश बांध देते हैं और अपने साथ यमलोक लेकर जाते हैं 

 हम इन सभी प्रश्नों का बहुत ही सरलता से हल करने की कोशिश करते हैं। सब समझना जीवन का प्रभाव अनंत है। हम अगणित वर्षों से जीवित हैं और आगे अगणित वर्षों तक जीवित रहेंगे। हम बस यह समझ बैठा है कि जिस दिन बच्चा माता के पेट में आता है या गर्भ से उत्पन्न होता है, उसी समय से जीवन आरंभ होता है और की गति बंद हो जाने पर शरीफ जाता है तो व्यक्ति हो जाती है। यह छोटा अधूरा और अज्ञान मुलाकात है। श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है। यह आत्मा किसी काल में ना तो चलता है और ना मरता ही है। उत्पन्न होकर फिर होने वाला ही है क्योंकि यह अजन्मा नित्य। सनातन और पुरातन है। शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता। जीवन और शरीर एक वस्तु नहीं है। जैसे कपड़ों को हम यथा समय बदलते रहते हैं। उसी प्रकार जी को भी शरीफ बदलने पड़ते हैं। तमाम जीवन भर एक कपड़ा नहीं पहना जा सकता। उसी प्रकार अनंत जीवन तक एक शरीर नहीं ठहर सकता। उसे बार-बार बदलने की आवश्यकता पड़ती है। साधारण का प्रथम स्थान होने पर नष्ट होता है। परंतु यदि बीच में ही कोई आकस्मिक कारण उपस्थित हो जावे।



 अल्प आयु में भी शरीर त्यागना पड़ता है। हममें से हर कोई किसी दिन मरने वाला है। इसे मौत से डरने का कोई फायदा नहीं है। आप नींद भी अपने शरीर की चेतना खोलने की संभावना पर दुख नहीं महसूस करते आप अच्छी नींद की कल्पना से ही बड़ा। आनंद अनुभव करते हैं क्योंकि केवल एक अनुभव है। साधारण व्यक्ति मृत्यु का भय और दुख के साथ देता है। तथापि जो लोग पहले जा चुके हैं, इसे शांति और स्वतंत्रता के चमत्कारिक अनुभव के रूप में जानते हैं। हमारा वास्तविक आत्मा अमर है। अमृत नामक परिवर्तन में थोड़ी देर के लिए सो सकते हैं, लेकिन नष्ट नहीं हो सकते। किनारे पर आती है और फिर समुद्र में वापस चली जाती है तो नहीं जाती या तो सागर के साथ ही खो जाती है या फिर एक और मेहर के रूप में वापस लौटती है। यह शरीर आज है। कल हो जाएगा, लेकिन इसके भीतर मौजूद हमेशा रहेगा। उस शाश्वत चेतना को समाप्त नहीं कर सकता। केवल एक वस्तु है अपने जीवन में कितनी बार अपने कपड़े बदले हैं। फिर भी इस वजह से आप यह नहीं कहेंगे कि आप बदल गए हैं इसी तरह जब आपने। क्योंकि समय इस शारीरिक पोशाक को त्याग देते हैं तो आप ही बदलते हैं। आप तो बस एक ही है। अमर आत्मा ईश्वर की संतान नहीं है कि सिर्फ एक बदलाव है। मृत्यु एक अवस्था है। जब आप जीवन से थक जाते हैं। आप सभी नाम की ओवरकोट को उतार देते हैं। दुनिया में वापस चले जाते हैं। अस्थाई मुक्ति है। गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर दूसरों को ग्रहण करता है। वैसे भी जीवात्मा पुरानी शरीरों को त्याग कर दूसरे ने शरीरों को प्राप्त होता है। क्या होता है जब औषधि की मृत्यु होती है तो पूरा शरीर आमतौर पर पंगु हो जाता है जैसे कि आपके शरीर का एक हिस्सा कभी-कभी सो जाता है। शुरुआत में शरीर छोड़ने वाला। इस प्रक्रिया के प्रति सचेत रहता है। उन्होंने लगता है उनकी भावना होती है जो कि रेलवे की क्रिया के बिना पढ़े संचालित नहीं हो सकते। खुद की स्थापना के दौरान संपत्ति और प्रिय जनों के लिए अत्यधिक आ सकती होने के कारण उनका दृढ़ता से ध्यान आता है और सांस वापस लाने के लिए संघर्ष होता है तो क्यों का मत है कि मृत्यु से कुछ समय पूर्व मनुष्य को बड़ी बेचैनी, पीड़ा और छटपटाहट होती है क्योंकि सब नारियों में से प्राण टीचर की एकत्रित होता है। किंतु पुराने अभ्यास के कारण मैं फिर उन गाड़ियों में खिसक जाता है जिससे एक प्रकार का आघात लगता है। यही पीड़ा का कारण है। स्वागत ऋषि आश्रम इन की इंद्रियां एक-एक कर दुख होती जाती हैं। श्रवण शक्ति सबसे अंत में लुप्त होती है जब प्राण निकलने का समय। बिल्कुल पास! तो एक प्रकार की मोर्चा आ जाती है और उस अचेतन अवस्था में प्राण शरीर से बाहर निकल जाते हैं।



 जब मनुष्य मरने को होता है तो उसकी समस्त पहाड़ शक्तियां एकत्रित होकर अंतर्मुखी हो जाती हैं और फिर शरीर से बाहर निकल पड़ती हैं। किस समय इस जीवनकाल के सभी अच्छे और बुरे कार्यों की समीक्षा मरने वाले के मन में होती है। जीवन में जो बातें भूल कर मस्तिष्क के सूक्ष्म को शिक्षकों में सुषुप्त अवस्था में पड़ी रहती हैं, वह सब एकत्रित होकर एक साथ निकलने के कारण जागृत एवं सकती है। इसलिए कुछ ही क्षण के अंदर जब अपने समस्त जीवन की घटनाओं को फिल्म की तरह देखा जाता है उस समय मन की आश्चर्यजनक शक्ति का पता लगता है। उनमें से घटनाओं के मानसिक चित्रों को देखने के लिए जीवित समय में बहुत समय की आवश्यकता होती है। पर वृक्षों के क्षणों में मैं बिल्कुल ही स्वल्प समय में पूरी की पूरी। मस्तिष्क पटल पर फोन जाती हैं। इस सब का जो सम्मिलित निष्कर्ष निकलता है, ग्रुप में संस्कार बनकर प्रेत आत्मा के साथ हो लेता है। संजीव को स्पष्ट दिखाई पड़ता है कि हमारी कौन-कौन सी काम में सफल हुई और कौन सी निप्पल हुई। हम कहां कहां है रे और कहां पर जीते से प्रेम किया और किस से घृणा द्वेष जीवन में जो मुख्य सार रहा, वह पर स्पष्ट दिखाई पड़ता है। जीवन में जो कुछ विचार प्रधान रूप से रहा है वह इस समय जीभ पर अपना प्रभाव अच्छी तरह चलता है और उसे मालूम पड़ जाता है। जीव को सूक्ष्म शरीर में कितने समय किस अवस्था में निवास करना पड़ेगा। यह अवसर मनुष्य के लिए बड़े महत्व का और रहता है। उसके सामने उसका सारा जीवन उपस्थित है। 


अद्भुत काल का फल देखकर उसे मालूम पड़ जाता है कि हमारा भविष्य किस प्रकार का होगा। थोड़ी देर के लिए उसे यह भी मालूम पड़ता है कि मैं कैसा हूं और मेरी जीवन का क्या उद्देश्य है। उसे इस समय यह समझ में आता है कि इस पर के नियम अटल न्याय पूर्ण और हितकारी हैं। इसके पश्चात फूल और सूक्ष्म शरीर के बीच का संबंध टूटता है कि दोनों जन घर के साथ ही छोड़ते हैं और पराया मनुष्य शांत होकर अचेतन अवस्था में प्राप्त होता है। क्यों ने अपने जीवन का दुरुपयोग किया होता है। उनके लिए घड़ी दारुण मानसिक तथा की होती है क्योंकि बहुमूल्य जीवन को ऐसे ही गवा दिया। छोड़ते वक्त इतनी ज्यादा शरीफ के प्रति कुटुंब के प्रति यह जमीन जायदाद के प्रति आसक्ति होती है। उतनी ज्यादा मानसिक पीड़ा होती है जिस व्यक्ति ने जीवन। कितना अच्छा सदुपयोग किया है। अध्यात्म पर चलते हुए अनासक्त भाव से अपने कर्तव्य निभाएं हैं। उनके लिए शरीर छोड़ने की प्रक्रिया उतनी ही आसान और सहज होती है जैसा कि बताया गया है कि श्रवण शक्ति सबसे अंत में लुप्त होती है। इसके ध्यान रखना चाहिए कि मरणासन्न व्यक्ति के आसपास कुछ बोला जाए जिससे उन्हें तकलीफ है। क्या कहना है कि अब तो उम्मीद बची ही नहीं। ऐसा ना कहें बल्कि उनके आसपास जब रहे तो हमेशा सकारात्मक की बोले। मानसिक रूप से उन्हें अपनी सद्भावना, सकारात्मक विचार और प्रेम भेजते रहे। अन्य व्यक्ति जो आसपास स्थित है, उनका कर्तव्य है कि उस समय शांत और मौन रहें व्यस्त की बातचीत करके। दिवाली की शांति में बाधा ना डालें और भक्ति युक्त व्यवहार करें। ऐसा करने से मरने वाला व्यक्ति बिना किसी बाधा के सूट के अपने जीवन चित्रों का दर्शन कर सकता है। भारतवर्ष में प्राय देखा जाता है कि अनेक लोग उसी स्थान पर जोर जोर से रोने और विलाप करने लगते हैं, जिसे मरने वाले की एकाग्रता भंग हो जाती है। अपने स्वास्थ्य के लिए मरते हुए प्राणी की शांति भंग करना और उसे सुख और शांति पहुंचाने का उपाय न करना बहुत ही बुरी बात है। इसलिए सब धर्मों के बुद्धिमान पुरुष है। आते हैं कि मरते हुए मनुष्य के निकट धर्म, ग्रंथ का पाठ, ईश्वर, प्रार्थना आदि की जाए क्योंकि ऐसा करने से शांति बनी रहती है और आप जीव को उसके मन में सहायता करते हैं। चार अक्षर उर्दू रंगों से निकलता है। मुख आंख, कान और नाक प्रमुख मार्ग हैं। दुष्ट व्यक्ति के लोगों का। नई शक्ति प्राप्त करने के लिए विनीता व्यस्त हो जाते हैं। यह नींद तंद्रा कितने समय तक रहती है, इसका कुछ निश्चित नियम नहीं है। यह जीव की योग्यता के ऊपर निर्भर है। आमतौर से 3 वर्ष की नेत्रा काफी होती है। इसमें से 1 वर्ष तक बड़ी गहरी निद्रा आती है। इससे की पुरानी थकान मिट जाए और सुख में इंद्रियां संवेदना का अनुभव करने के योग्य चाबी दूसरे वर्ष तंद्रा भंग होती है। पुराने जीवन में की गई गलतियों के सुधार तथा आगामी योग्यता के संपादन का प्रयत्न करता है। बीते वर्ष नवीन जन्म धारण करने की खोज में लग जाता है। यह अवधि एक मोटा हिसाब है है, महीने में आ गए हैं और कई को 5 वर्ष तक लगे हैं भी जीवात्मा जो आसान और उदित में रहती हैं, अटकती रहती है। विपरीत योनि में चली जाती हैं उनकी अधिकतम। आयु 12 वर्ष समझी जाती है। इस प्रकार 2 जन्मों के बीच का अंतर अधिक से अधिक 12 वर्ष हो सकता है। आज के लिए इतना ही आता है आपको। 


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मल मूत्र में। निकलता हुआ देखा जाता है। योगी ब्रह्मरंध्र से प्राण त्याग करते हैं। मरते हुए आदमी की चेतना खुद को अचानक शरीर के वजन सांस लेने की आवश्यकता और किसी भी शारीरिक दर्द से अलग पाती है। भारतीय योगी जीव का सूक्ष्म शरीर शुभ ज्योति स्वरूप सफेद मानते हैं। मृत आत्मा को शरीर से अलग होने पर शरीर में प्रस्फुटित हो जाता है। यह शरीर शरीर की बनावट का होता है। वर्क को बड़ा आश्चर्य लगता है कि मेरा शरीर हल्का हो गया है। हवा में पक्षियों की तरह उड़ सकता हूं और इच्छा मात्र से चाहे जहां भी आ जा सकता हूं तो शरीर छोड़ने के बाद मैं अपने मृत शरीर के आसपास रहता है। शरीर के आसपास प्रिय जनों को रोते बिलखते देखकर मैं उनसे कुछ कहना चाहता है। सांत्वना देना चाहता है या वापस पुराने शरीफ में लौटना चाहता। स्थित आत्मा ने बताया कि मैं मरने के बाद बड़ी अच्छी स्थिति में पड़ गया। स्थूल शरीर में और प्रिय जनों में मोह होने के कारण उनके संपर्क में आना चाहता था। सब को देखता था पर मुझे कोई नहीं देख पाता था। मैं सब की वाणी सुनता था, पर मैं जो बड़े जोर-जोर से कहता था, उसे कोई भी नहीं सुनता था। इन सब बातों से तो कष्ट होता था पर अपने नए शरीर के बारे में भी खुशी थी कि मैं कितना हल्का हो गया हूं और कितनी तेजी से चारों और उठ सकता हूं तथा मैं मौत से डरा करता था। पर यहां मुझे देखने लायक कुछ भी बात मालूम नहीं हुई। सूक्ष्म शरीर में फंस घटित होने के कारण पुराने शरीर से कुछ विशेष मौका भी नहीं रही है। शरीफ पुरानी की अपेक्षा हर दृष्टि से अच्छा था। मैं अपना अस्तित्व वैसा ही अनुभव करता था जैसा कि भी दशा में कई बार मैंने अपने हाथों को हिला। अरे अपने अंग प्रत्यंग को देखा और मुझे ऐसा नहीं लगा कि मैं मर गया हूं।

 अब मैंने समझा कि मृत्यु से डरने की कोई बात नहीं है। शरीर परिवर्तन की एक मामूली सुख शांति प्रिया है। जब तक शरीर की अंत्येष्टि क्रिया नहीं होती तब तक जीवात्मा बार-बार उसके आसपास मंडराता रहता है। मृतक की घरवाली इतना रोना पीटना करते हैं। मृतक को उतनी ही तकलीफ होती है। घरवालों की दुखी होने से जीव आत्मा शांत होती है और उसके आगे की यात्रा में बाधा उत्पन्न होती है। इसलिए घरवालों को चाहिए कि मृतक को धन्यवाद दें और उनके लिए प्रार्थना करें ताकि वह अपने आगे की यात्रा पर आगे बढ़ सके। निराश होकर दूसरी और मन को लौटा लेता है किंतु कार्ड देने पर प्रिय वस्तु का मुंह करता है और बहुत दिनों तक उसके आसपास फिरा करता है। प्रिया के पास जब आत्मा को पता चलता है कि आपका शरीर नहीं रहा तो मैं मरने के लिए सामंजस्य स्थापित करती है और एक बहुत ही शांतिपूर्ण सुरंग के माध्यम से उड़ने की भावना का अनुभव करती है। घोर परिश्रम से थका हुआ आदमी जिस प्रकार कोमल श्रेया प्राप्त करते हैं, निद्रा में पड़ जाता है। उसी प्रकार मृत आत्माओं को घर का सारा काम उतारने के लिए एक मित्र की आवश्यकता होती है। इसमें से जीव को बड़ी शांति मिलती है और आगे का काम करने के लिए शक्ति प्राप्त कर लेता है। मरते हैं नींद नहीं आती वरन इसमें कुछ देर लगती है। प्रायः एक महीना तक लग जाता है। कारण यह है कि प्रांत के बाद कुछ समय तक जीवन की वासना ए कौन है के हैं और वे धीरे-धीरे ही निर्मल पड़ती हैं। पूरे मनुष्यों की वासना स्वभाव का गिरी पड़ जाती हैं। इसलिए शरीर छोड़ने के बाद बहुत। E-mitra करते हैं जिनके पास में प्रबल होती हैं। खासतौर से वे लोग जो अकाल मृत्यु, अपघात या आत्महत्या से मरे होते हैं जिनकी शरीर और कुटुंब के प्रति गहरी आ सकती होती है। वे अपनी यात्रा पर आगे बढ़ना नहीं चाहते। परंतु स्थूल शरीर ना होने की वजह से अपने आप को बहुत मजबूर महसूस करते हैं। बहुत काल तक विलाप करते फिरते हैं। उनके विषय मानसिक स्थिति उन्हें नींद क्यों नहीं लेने देते। ऐसी आत्माओं के लिए हमें दया करना चाहिए और प्रार्थना करना चाहिए ताकि वह इस विषम परिस्थिति से निकल सकें और अपनी आगे की यात्रा कर सकें। साधारण वासना वाले प्रभुत्व चित्र और धार्मिक प्रति वाले प्रतिक्रिया के बाद फिर पुराने संबंधों से रिश्ता तोड़ देते हैं और मन को समझा कर उदासीनता धारण करते हैं। उदासीनता आते ही उन्हें नेत्रा आ जाती है। ।


दोस्तों अब तो समझ लिया होंगे कि मृत्यु क्या है शरीर से प्राण कैसे निकलते हैं अगर अच्छा लगा हो तो शेयर जरूर कीजिएगा दोस्तों के पास और कमेंट बॉक्स में जरूर बताइएगा।

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