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2024 में वट सावित्री व्रत पूजा कब है | 2024 में वट सावित्री व्रत पूजा कब है पूजा विधि शुभ मुहूर्त तिथि और समय

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 2024 में वट सावित्री व्रत पूजा कब है:- नमस्कार दोस्तों आज हम आपको बताएंगे कि  2024 में वट सावित्री व्रत पूजा कब है  2024 में वट सावित्री व्रत पूजा कब है पूजा विधि शुभ मुहूर्त तिथि और समय पूजा करने का शुभ मुहूर्त कब है पूजा क्या है और वट सावित्री व्रत पूजा कब शुरू होगी

  इस व्रत को सुहागिन महिलाएं एकताबद्ध स्वर में और संत की प्राप्ति के साथ-साथ जीवन को खुशहाल बनाए रखने के लिए करती हैं

हिंदू धर्म में वट सोनिया व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। प्राप्त होता है




 2024 में वट सावित्री व्रत पूजा कब है

अगर आप वट सोनिया व्रत की विधि करना चाहते हैं और आपको वट सोनिया व्रत और पूजा के बारे में नहीं पता है तो आइए अब हम जानते हैं कि वट सोनिया व्रत की विधि क्या है सुहागिन महिलाएं वट वृक्ष को वट वृक्ष की पूजा करनी चाहिए और कच्चा सुत से वट वृक्ष की 12 बार करवानी करनी चाहिए


पूजा करने से पहले दैनिक क्रिया से निवृत्त, इसके बाद सभी व्रत करने वाली महिलाएं, सूर्य उदय होने से पहले, अनुष्ठानिक और तिल से स्नान करने से पहले, इसके बाद साफ या नई अवस्था में सूर्य भगवान को जल चढ़ाना चाहिए, इसके बाद सजा सावरकर सेल सिंगार करके वट सावित्री की पूजा की जाती है और फिर मंत्र का जाप करें

  इसके बाद कच्चे धागे को हाथ में लेकर वट वृक्ष के सामने वाले घेरे को 12 फेरे लेना चाहिए और हर तार को एक चना चढ़ाना चाहिए और कच्चे सूत के टुकड़े को बर्गद की तरफ देखना चाहिए, बरगद की तने में लपेटते रहे सारी पूजा विधि करने के बाद सत्यवान और सुपरस्टार की कहानियां हैं


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वट सावित्री व्रत में पूजा कैसे करें?

वट वृक्ष के नीचे मिट्टी की मूर्ति, सत्यवान और बफ़ेलो पर सवार यम की मूर्ति स्थापित कर पूजा करनी चाहिए और बड़ की जड़ में पानी देना चाहिए। पूजा के लिए जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, सूखाया हुआ चना, फूल और धूप होना चाहिए। जल से वट वृक्ष को सींच कर तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेट कर तीन बार अभ्यास करना चाहिए। इसकी मूल सत्यवान-सावित्री की कथा सुननी चाहिए। इसकी सूची भीगे हुए चानों का बयाना उस पर यथाशक्ति तीरंदाजों को अपने सास को सौंपना चाहिए और उनके चरण को छूना चाहिए।

वट सावित्री पूजा सामग्री (वट सावित्री पूजा विधि)


वट सावित्री पूजा करने के लिए पूजा की थाली में एक सा बरगद का पेड़, लाल रंग का धागा, मिट्टी का कलश, मिट्टी का दीपक, बांस का पंखा, लाल कपड़ा, सिन्दूर, हल्दी, मौली चढ़ाने के लिए गया, पात्र लेकर वट वृक्ष के पास। इसके बाद सभी व्रती महिलाओं को अपने आंचल में बरगद का पेड़ 24 पुड़िया तालाब वट वृक्ष को चढ़ाना चाहिए

अगर आप जानते हैं  2024 में वट सावित्री व्रत कब है और अगर आप वट सावित्री व्रत करना चाहते हैं तो इसके महत्व के बारे में ये जरूर बताएं

  अगर किसी महिला को संत सुख की प्राप्ति नहीं हो रही है और वह महिला संत सुख से है तो उसे वट सुहागन का आशीर्वाद मिलता है। पतिव्रता का प्रतीक माना जाता है ऐसा भी माना जाता है कि अगर किसी भी सुहागन महिला के पति को किसी भी प्रकार का रोग लग जाता है तो उसे पतिव्रता का प्रतीक माना जाता है।

  तो वटराजा सावित्री व्रत करने से हर रोग और पीड़ा से मुक्ति मिलती है वटराजा सोनिया व्रत करने से मृत्यु के देवता की कृपा बनी रहती है और जीवन में आने वाली अकाल मृत्यु से उनके पति की रक्षा होती है। मृत्यु नहीं होती


वट सावित्री व्रत कैसे करें (Vat savitri vrat kaise kare)


वट सावित्री व्रत करने की सरल विधि कुछ इस प्रकार है वट सावित्री व्रत में वट वृक्ष की पूजा आपके घर या गांव के आसपास अवश्य होगी

वट वृक्ष की पूजा करने के लिए पूजा की पूरी तैयारी कर ली गई है और फिर पूरी तरह से तैयार हो गई है। पूजा करना चाहिए

सबसे पहले आप वटवृक्ष को जल तलाश करें जल चढ़ाने के लिए एक बड़ा सा मिट्टी का बर्तन ले ले जिससे आप वटवृक्ष को जल तलाश कर सकें जल की धारा को बनाए रखने में कोई समय नहीं लगता है।


 2024-में-वट-सावित्री-व्रत-कब-है


  • जल चढ़ाने के बाद वृक्ष में कच्चा सूत या कलावा लपेटे अगर आपके पास लाल रंग का कपड़ा या चुन्नी हो तो उसे कच्चा सूत या कलावे के साथ बांध दो और फिर वट वृक्ष के चारों ओर की सराहना करते हुए कच्चे सूत या कलावा लपेटना शुरू करें श्रद्धा के अनुसार इसे आप एक बार 5 बार या फिर यदि कलावा की मात्रा अधिक हो तो इसे 12 बार तक उपयोग करें यह क्रिया करें
  • इसके बाद वट वृक्ष में चंदन की पूजा की जाती है, इसके बाद रोली से या चंदन से वटवृक्ष में स्वास्तिक बनाया जाता है।
  • इसके बाद वटवृक्ष के नीचे दीपक जलाएं, इसके बाद सुहाग की सामग्री वटवृक्ष को चढ़ाएं।
  • इसके बाद वट वृक्ष को भोग लगाना चाहिए, इसमें आपको फल पूरी तरह से हलवा और पुआ का भोग लगाना चाहिए, इसके बाद जल चढ़ाना चाहिए क्योंकि भोग के बाद जल चढ़ाना जरूरी है।
  • इसके बाद वटवृक्ष का फल वर गुले को लेकर एक हाथ से ऊपर की ओर उड़ कर अपना आँचल फैला कर ले ले नीचे गिरे हुए वर गुले को वह चढ़ा दे और आँचल में आये वर गुले को अपने घर लेकर चले जाओ

2024 में वट सावित्री व्रत पूजा कब है पूजा विधि शुभ मुहूर्त तिथि और समय


इसके बाद अपने पति के चरण छुए क्योंकि वट वृक्ष की पूजा सुहाग की पूजा मनी जाती है इसलिए पूजा करने के बाद आपके पति के चरण छूकर उसका आशीर्वाद लें


वट सावित्री पूर्णिमा पूजा 2024 तारीख , शुभ मुहूर्त

पूर्णिमा तिथि प्रारंभ : जून 21 , 2024 को 11. 16 AM बजे पूर्णिमा तिथि समाप्त : जून 22, 2024 को 0 9 : 11 AM बजे

वट सावित्री क्यों मनाई जाती है (Vat savitri or Vat purnima ka Reason)

कहा जाता है इस दिन सोनिया अपने पति सत्यभामा के प्राण यमराज के यहां से वापस ले आई थी। इसी के बाद उन्हें सती सोनिया ने कहा जाने लगा. इस त्यौहार का महत्व हर वेद के जीवन में होता है। पति की सुख समृद्धि व लम्बी आयु के लिए रखा जाता है ये व्रत। साथ ही ऐसा माना जाता है कि इस व्रत से जीवन में दुख दूर हो जाते हैं। इससे घर में बच्चों के जीवन में सुख शांति बनी रहती है, उनका विकास होता है। वट सावित्री व वट पूर्णिमा व्रत का महत्व (Vat savitri or Vat purnima mahatv) वट का मतलब बरगद का पेड़, यह एक विशाल पेड़ होता है, जिसमें जटाएं लटकती रहती हैं। सावित्री देवी का रूप माना जाता है। हिंदू पुराण में बरगद के पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु विष्णु महेश का निवास माना जाता है। इस वृक्ष की जड़ में ब्रम्हा निवास करते हैं, समुद्र तट पर विष्णु व्रिउपरी के सामने के भाग में शिव विद्यमान हैं। इसलिए इस वृक्ष के नीचे देखें इसकी पूजा करने से सारे मन की शांति होती है। वट सावित्री कथा (वट पूर्णिमा व्रत कथा) अश्वपति नाम का सच्चा, ईमानदार राजा हुआ था। उनके जीवन में सभी प्रकार का कल्याणराम सुख शांति थी। बस एक ही कष्ट था, उसका कोई बच्चा नहीं था। वह एक बच्चा चाहता था, उसके लिए सबने कहा कि वो देवी सोनिया की आराधना करे, वो उसका मनोवलोकित हो। बच्चे की चाहत में वह पूरे 18 साल तक कठिन तपस्या करता रहा। उनके कठोर ताप को देखते हुए देवी सोनिया ने खुद को अपने पास रखा, और उन्हें एक बेटी का श्रृंगार दिया, जिसका नाम रखा गया था। जब ये बड़ी लड़की हुई और युवा अवस्था में सांप तो खुद अपने लिए कमाल चाहने लगी। उसके बाद उसे सत्यभामा मिली। लेकिन सत्यभामा की कुंडली के अनुसार उनके जीवन से ज्यादा कुछ नहीं था, उनकी 1 साल में मृत्यु लिखी गई थी। सोनिया ने अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ एक बार बरगद के पेड़ के नीचे मकान बनाया था। जब सोनिया की गोद में सत्यभामा लेटे हुए थे तब यमलोक के राजा यमराज ने उनके प्राण लेने के लिए अपने दूत को पकड़ लिया था। लेकिन सोनिया अपने प्रिय पति के प्राण लेकर चल बसीं। यमराज तो कई लोगों को बुलाते हैं, लेकिन सावित्री किसी को भी अपने पति के प्राण नहीं देतीं। तब स्वयं यमराज उनके पास जाते हैं, और सत्यभामा के प्राण मांगते हैं। सोनिया के मन में उन्हें बदले में वरमाला कहा जाता है। बहन अपनी सास-ससुर की सुख शांति मांगती है, जो यमराज उसे दे देता है। लेकिन इसके बाद भी सोनिया ने अपने पति को नहीं छोड़ा, और साथ में जाने को बोलीं| जिसके बाद आपके माता पिता की सुख समृद्धि मांगती है। यमराज वो भी मान गए हैं, लेकिन सीता फिर भी उनके पीछे उनके आवास में जाने लगी हैं। तब यमराज आखरी इच्छा उनसे एक बेटा मांगती है। यमराज ये भी मानते हैं. लेकिन सावित्री यह आभूषण यमराज के द्वारा बनाई गई चतुराई से करती है। वोट बोलती है, बिना पति के उसे बेटा कैसे मिल सकता है। यमराज कुछ नहीं बोल बैठे, लेकिन सावित्री के सात्विक प्रेम को वो समझ जाते हैं। यमराज सावित्री के प्रयास को देखकर प्रसन्न हो जाते हैं, और सत्यभामा की आत्मा उनके शरीर में वापस भेज दी जाती है। इसके साथ ही दुनिया ने सती सोनिया का नाम खोजा है। और यहां से वट सोनिया का त्योहार मनाया जाने लगा. वट सागर और वट पूर्णिमा सागर का उपाय वट सावित्री व्रत का महत्व करवा चौथ व्रत का महत्व वैसा ही होता है। वट सावित्री के व्रत में कई 3 दिन का व्रत रखते हैं लोग. 3 दिन बिना खाना खाना मुश्किल है, इसलिए पहले दिन रात को खाना खा लेना है, असल दिन फूल फल खा सकते हैं, तीसरे दिन पूरे दिन का व्रत रखना है। रात में पूजा के बाद होता है ये व्रत पूरा। महिलाएं दुल्हन की तरह अपना साज श्रंगार करती हैं। वट सावित्री विधि व वट पूर्णिमा व्रत पूजा (वट सावित्री या वट पूर्णिमा पूजा विधि) इस त्यौहार में स्त्रियां सोनिया की देवी की पूजा की जाती है। इसके लिए निम्नलिखित विधि है: इस पूजा को करने वाली स्त्रियां सबसे पहले पूजा वाले दिन सुबह स्नान कर शुद्ध हो जाती है। इसके बाद नए वस्त्रों और आभूषणों को धारण किया जाता है। सभी स्त्रियाँ इस दिन के 3 दिन पहले से ही पोस्ट करती हैं। लेकिन कई सिर्फ वट सोनिया वाले दिन की व्रत पूजा होती है, और पूजा के बाद भोजन ग्रहण कर लिया जाता है। यह पूजा वट के पेड़ के नीचे होती है। मूल रूप से वृक्ष के नीचे एक स्थान को अच्छे से साफ करके वहां सभी आवश्यक पूज्यनीयों को रखते हैं। इसके बाद सत्यवान और सोनिया की मूर्तियों को हटाकर उन्हें वट वृक्ष के जड़ में स्थापित किया गया, और इन मूर्तियों को लाल वस्त्र पहनाया गया। एक बांस की टोकरी है, जिसमें सात तरह के अनाज रखे हुए हैं, जिनमें कपड़ों के 2 टुकड़े से डाले जाते हैं। एक दूसरे बांस की टोकरी में देवी सोनिया की प्रतिमा है, साथ में धूप, दीप, कुमकुम, अक्षत, मोली आदि पूजा की सामग्री है। अब वट वृक्ष में जल चढ़ाकर, कुमकुम, अक्षत चढ़ाते हैं, साथ ही देवी सावित्री की पूजा भी करते हैं। इसके बाद बांस के बने पेरू से सत्यवान और सोनिया की मूर्ति को हवा दी जाती है। स्त्रियाँ वट वृक्ष के एक पत्ते को अपने बालों में लगा के रखती हैं। इसके बाद सात्विक मन से प्रार्थना करते हैं। फिर लाल मौली/सूत के चश्मे को लेकर वट वृक्ष के चारों ओर घूमते हुए बांधते हैं, ऐसा 7 बार करते हैं। इसके बाद किसी पुरोहित या पंडित जी से सत्यवान और सोनिया के व्रत की कथा है। कथा समाप्त हो जाने के बाद कथा देखने वाले पंडित जी को अपनी विचारधारा के अनुसार दक्षिणा दी जाती है। ये करने के बाद ब्राह्मण और मठ मंदा को दान करना होता है। चना और गुड़ का




पूजा करने के बाद फिर से 5 या 7 बार वृक्षवृक्ष की पूजा करें उसके सिर झुकाकर वटवृक्ष की पूजा करें इसके बाद वटवृक्ष से गले मिले


इसके बाद अपने दोनों हाथों से वटवृक्ष से प्रार्थना करें कि आप मेरे और हमारे सुहाग की हमेशा रक्षा करें और हम पूरा जीवन सुहागिन बनकर जियें


पूर्ण पूजा विधि समाप्त होने के बाद वट वृक्ष की पत्तियों के अंत भाग में कौंपे लगे हुए होते हैं एक छोटी सी कौंप तोड़ ले और फिर जल के साथ उसे मनाएं और अपने पति के हाथों से जल पीकर व्रत तोड़े


और इस तरह से आप वट सावित्री व्रत की पूजा कर सकते हैं

वट सावित्री व्रत कथा (Vat savitri vrat katha)


भद्र देश के एक राजा का नाम अश्वपति था भद्र देश के राजा अश्वपति का कोई संतान नहीं था राजा अश्वपति की प्राप्ति के लिए हर रोज भगवान से प्रार्थना करते थे

और रोज पूजा पाठ मंत्र यज्ञ घर यादी पुण्य का काम करने लगे लेकिन फिर भी उन्हें संत सुख नहीं मिला फिर एक ऋषि के दर्शन के लिए संत प्राप्ति के साथ-साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियां दी 18 वर्ष तक यह क्रम इसके बाद जारी हो रहा है। देवी प्रकट हुई वर कि राजा एक किशोरी कन्या का जन्म होगा


  सोनिया देवी की कृपा से जन्म लेने के कारण उस कन्या का नाम सोनिया रखा गया जो कन्या के रूप में बहुत बड़ी थी क्योंकि वर ना मिलने के कारण सोनिया के पिता दुखी थे

तब उन्होंने सत्यवान से स्वयं वर की तलाश करने को कहा था, तब सत्य ने अपने वर्ग की खोज में तपोवन में भटकने लगी थी, वहां वर्षों से उस देश के राजा धूमत्सेन रहते थे, क्योंकि उनके पुत्र सत्यवान को उनके राजा ने छीन लिया था। देव ऋषि नारद का वर्णन जब यह बात सामने आई तब राजा अश्वपति पति के पास पहुंचे और उन्होंने अश्वपति से कहा कि हे राजन् विवाह की पुत्री सोनिया ने अपने वर के रूप में सत्यवान को चुना तब राजा अश्वपति ने कहा कि मैं ही तो अपनी हूं पुत्री सावित्री को स्वयं वर की खोज में भेजा गया था


और जब हमारे मित्र को सत्यवान पसंद आया तो इसमें कोई विशेष दोष नहीं होगा तब नारद मुनि ने कहा हे राजन सत्यवान गुणवान है धर्मात्मा है और बलवान भी है लेकिन उसकी आयु बहुत छोटी है सत्यवान अल्पायु है 1 वर्ष के बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी देव ऋषि नारद की बात से दुखी होकर राजा अश्वपति घोर चिंता में डूब गए, जब उनके पिता ने चिंता व्यक्त की तो ऋषि ने अपने पिता से चिंता का कारण पूछा, तब राजा ने कहा कि पुत्री हम चिंता लेकर चिंतित हैं।


  इसलिए जिसने सत्यवान को अपने वर के रूप में चुना वह अल्पायु है इसलिए तुम किसी और को अपना प्रेमी बनाओ इस पर सोनिया ने कहा कि उसके पिता श्री आर्य कन्या हैं


जीवन में एक ही बार अपने पति का वरण करते हैं राजा एक ही बार प्रतिज्ञा करते हैं और पंडित एक ही बार प्रतिज्ञा करते हैं और कन्यादान भी एक ही बार करते हैं इसलिए है


पिताश्री मैं सत्यवान को अपने मन में पति के रूप में स्वीकार कर चुका हूं इसलिए मैंने सत्यवान से ही विवाह कर लिया और सत्यवान से विवाह कर लिया तब राजा पुत्री की जिद के आगे हार गई और सत्यवान से विवाह कर लिया।


मैं भी अपने मुसाफिरों को हितेशी सास की सेवा करने लगी थी, मैं भी नारद मुनि सत्यवान की मृत्यु के दिन के बारे में बता रही थी कि वह एक दिन ऐसे ही करीब आने लगी थीं, सोनिया अधीर होने लगी थीं और उन्होंने 3 दिन पहले ही उनकी समाधि शुरू कर दी थी दिया


  और नारद मुनि ने कथित निश्चित तिथि पर पितरों की पूजा की, हर दिन की तरह सत्यवान उस दिन जंगल में साथ चले गए, सत्यवान के लिए जंगल में लकड़ी काटने के लिए एक पेड़ पर चढ़ा हुआ अचानक से उनके सिर में तेज दर्द होने लगा। व्याकुल सत्यवान वृक्ष से नीचे उतर गया


  जब यमराज पीछे मुड़कर देखने लगे तब यमराज पीछे आ गए और सत्यवान के प्राण लेकर चलने लगे।

  तमराज सावित्री को शास्त्र की कोशिश करने लगा कि पति की आयु समाप्त हो गई है और यही का विधान है मैं पति का प्राण लेकर लोकम नहीं जा रहा हूं और कोई भी जीवित मनुष्य यमलोक में प्रवेश नहीं कर सकता है इसलिए तुम लौट जाओ लेकिन सोनिया नहीं, मैं अपने पति का प्राण लेकर वापस नहीं जाऊंगी


  तब यमराज ने कहा, 'ससुर वनवासी और पतिव्रता हैं। दिव्य ज्योति प्रदान करें तब यमराज ने तथास्तु कहा था कि अब तुम वापस लौट आओगे लेकिन जब यमराज ने देखा तो सत्यवान पीछे पीछे की ओर घूम रहे थे।



  तब उन्होंने कहा कि मेरे पतिदेव के पीछे चलने में कोई परेशानी नहीं है, तब उन्होंने कहा कि मेरे पतिदेव के पीछे चलना मेरा कर्तव्य है। कोई और भी मांग कर सकता है तब यमराज ने कहा कि यमराज ने कहा है कि हमारे प्रियजन का राज चल गया है, वापस लौट आओ यमराज ने कहा कि अब तुम लौट जाओ लेकिन यमराज के दर्शन करने पर यमराज पीछे-पीछे चले जाएंगे। फिर भी नहीं लौटी सावित्री


तब उन्होंने यमराज से 100 पुत्रों का वर मांगा था।


  हे प्रभु, मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती का आशीर्वाद दिया है, अब यमराज बुरी तरह से विफल हो गए हैं, एक तरफ उनकी पूजा होती है और दूसरी तरफ सत्यवान का प्राण होता है। यमराज को सत्यवान का प्राण लौटना चाहिए

और यमराज अंतर्ध्यान हो गए और सोनिया उसी वटवृक्ष के नीचे चली गईं जहां सत्यवान का शरीर विच्छेदित हो गया था और सत्यवान जीवित हो गए थे, उनकी अंधेरी भूमि पर पित्रों की दृष्टि मिल गई थी और उनके पितरों का राज भी मिल गया था, दोनों सुख-खुशी अपने-अपने राज्य की ओर चल रहे थे। और सत्यवान और सोनिया चिरकाल तक राज्य सुख भागते रहे


मूल रूप से पतिव्रता सासुर का पूजन करने के साथ-साथ अन्य जिज्ञासाओं को भी शुरू करने के लिए इस कथा को सुनें। होता है


FAQ बार-बार पूछे जाने वाले प्रश्न


वट सावित्री व्रत में चना क्यों चढ़ाया जाता है (Vat savitri vrat me chona kyo chodhaaya jata hai)


  2024 me vat savitri vrat kab hai ऐसी मान्यता है कि जब यमराज सत्यवान के प्राण लेकर जा रहे थे तो यमराज ने उनसे कहा था कि वे अपने पीछे-पीछे चल रही हैं।


  पहले श्रृंगार के रूप में सोनिया ने अपने अँधेरे सास-ससुर के दर्शन किये, दूसरी बार आपके सास-ससुर द्वारा खोया हुआ राजपाट ने माँगा और अंत में सौ पुत्रों का श्रृंगार माँगा, सावित्री एक पतिव्रता स्त्री थी और उसके बिना सत्यवान के प्राण लौटाए



  यमराज का श्रृंगार पूरा नहीं हुआ इसलिए यमराज ने सत्यवान का प्राण चने के रूप में वापस ले लिया इसलिए वट वृक्ष में वट वृक्ष का विशेष महत्व माना जाता है, जिसके बाद एक चना चढ़ाया जाता है।


वट सावित्री व्रत क्यों किया जाता है (Vat savitri vrat kyo kya jata hai)


वट वृक्ष की पूजा सुहागन स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र और सदा सुहागन का आशीर्वाद और सदा सौभाग्यवती के लिए करती हैं वट वृक्ष की पूजा वट वृक्ष की पूजा करने से पति की लंबी उम्र और सदा सौभाग्यवती बनी रहती हैं पति की आयु लंबी



वट सावित्री व्रत में वट वृक्ष की पूजा क्यों की जाती है (वट सावित्री व्रत में वट वृक्ष की पूजा क्यों की जाती है)


धार्मिक सिद्धांतों के अनुसार भारत वृक्ष की जड़ में ब्रह्मदेव मध्य भाग में भगवान विष्णु के पत्ते और डालियों में भगवान शिव का निवास स्थान है और संपूर्ण वृक्ष में माता सरस्वती विद्या देवी का निवास स्थान माना जाता है।


  ऐसा कहा जाता है कि वट वृक्ष की पूजा लंबी आयु, सुख समृद्धि और विलक्षण सौभाग्यवती के मित्र के रूप में की जाती है, लेकिन वैज्ञानिक दृष्टि से भी देखा जाए तो वट वृक्ष को वृक्षों का राजा कहा जाता है।


  वटवृक्ष यानी बरगद का एक विशाल पेड़ होता है पेड़ पर की और पक्षियों के जीवन में हवा को शुद्ध करने और मानव की आवश्यकताओं को पूरा करने की वकालत की गई है इस वृक्ष की अहम भूमिका प्राचीन काल में मानवधन और आर्थिक सिद्धांतों को पूरा करने की है। के लिए लकड़ी पर प्रतिबंध यह मानना ​​था कि वर्षा के मौसम में पेड़ उपचार के फलने फूलने के लिए सबसे अच्छा समय माना जाता है इसलिए वर्षा काल और उसके होने के कुछ विचार पहले पेड़ों को काटने से बचाने के साथ मानव जीवन की रक्षा के लिए ऐसे भी व्रत विधान धर्म के साथ जुड़े

वट सावित्री व्रत की पूजा विधि Vat Savitri fast worship method


इस दिन महिलाएं प्रातः जल्दी उठकर स्नानादि करके लाल या पीले रंग के परिधान धारण करें।

फिर क्रैक करके तैयार हो जाएं। एक ही साथ सभी पूजन सामग्री को एक स्थान पर एकत्रित कर लें और थाली सजा लें।

किसी भी वट वृक्ष के नीचे सावित्री और सत्यवान की प्रतिमा स्थापित करें।

फिर बरगद के वृक्ष की जड़ में जल अर्पित करें और पुष्प, अक्षर, फूल, भीगा चना, गुड व मिठाई के गहने।

वट के वृक्ष पर सूत लपेटते हुए सात बार परिक्रमा करें और अंत में प्रणाम करके परिक्रमा पूर्ण करें।

अब हाथ में चने लेकर वट सावित्री की कथा पढ़ें या सुनें। इसके बाद पूजा संपन्न होने पर ब्राह्मणों को फल और वस्त्र करें।



Vat Savitri Vrat का महत्व


Vat Savitri Vrat के दिन सुहागिन महिलाएं सुबह उठकर स्नान आदि करके सोलह शृंगार करती हैं और व्रत के संकल्प लेती हैं। पूजा का सामान बनाकर बरगद के पेड़ के नीचे बैठ कर पूजा करती हैं और कथा सुनती हैं। मान्यता है कि Vat Savitri Vrat के दिन विधिवत पूजन करने से महिलाओं को अखंड संकल्प का वरदान प्राप्त होता है।




ये है व्रत का महत्व


Vat Savitri Vrat का व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत खास माना जाता है। इस व्रत को लेकर सुहागिन महिलाएं सावित्री की तरह अपने पति के जीवन की रक्षा करती हैं और उनके साथ सुखद व्यवहार जीवन की कामना करती हैं। मान्यता है कि व्रत के प्रभाव से उनके जीवन में सुख समृद्धि प्राप्त होती है और निःसंतान संबंधों की पवित्रता प्राप्त होती है।


ये है व्रत कथा


व्रत कथा के अनुसार मद्र देश के राजा अश्वपति की पुत्री सावित्री अत्यंत गुणवान थे। जब सावित्री युवा हुई तो राजा अश्वपति ने अपने मंत्री के साथ उन्हें अपना वर देने के लिए भेजा। वे महाराज द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान के रूप में चुने गए। उसी समय देवर्षि नारद ने बताया कि शादी के 12 साल बाद सत्यवान की मृत्यु हो जाएगी। इसके बाद राजा अश्वपति ने सावित्री को दूसरा वर सारांश के लिए कहा, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। नारदजी से सत्यवान की मृत्यु का समय पता करने के बाद वो पति व सास-सुर के साथ जंगल में रहने लगीं।


नारदजी के बताए समय के कुछ दिन पहले ही सावित्री ने सत्यवान की दीर्घायु के लिए व्रत रखना शुरू कर दिया। जब यमराज अपने पति सत्यवान के प्राण लेने के लिए आए तो सावित्री भी उनके पीछे चल रहे जमावड़े के पीछे हो गईं। यमराज उन्हें बार-बार वापस जाने के लिए कह रहे थे, लेकिन सावित्री वापस लौटने के लिए तैयार नहीं हुईं। सावित्री की धर्मनिष्ठा से यमराज ने उन्हें ग्लानि के लिए कहा। तो सावित्री ने कहा कि वे उनसे तीन वर मांगना चाहती हैं। यमराज ने उन्हें निश्चित रूप से स्वीकार कर लिया। तब सावित्री ने पहले वरदान में कहा कि मेरे अंक हो जाएंगे सास ससुर को आंखों की ज्योति मिल जाएगी। दूसरे वर में उन्होंने कहा कि उनके सुसुर का छूट राज्य का पाठ वापस मिल जाएगा और सभी में उन्होंने सौ पुत्रों का वरदान मांग लिया। यमराज के तथास्तु कहें ही सावित्री बोलीं कि यदि आप मेरे पति के प्राण वापस नहीं जाएंगे तो मैं पुत्रवती कैसे हो पाउंगी। तब यमराज को अपनी भूल का आभास हुआ और उन्होंने सत्यवान के प्राण वापस कर दिए। इस तरह सावित्री ने ना केवल सत्यवान की जान बचाई बल्कि अपने परिवार का भी कल्याण किया।



वट वृक्ष का धार्मिक और आयुर्वेदिक महत्व


भारत के पूज्यनीय व्रतों में वट यानी बरगद का महत्वपूर्ण स्थान है। वैदिक धर्म के साथ-साथ जैन और बौद्ध धर्मों में भी वट पूजा को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे अमरता का प्रतीक भी माना जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार Vat Savitri Vrat ज्येष्ठ मास की अमावस्या और पूर्णिमा के दिन होना चाहिए। अत: गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत की स्त्रियां ज्येष्ठ पूर्णिमा को यह व्रत करती हैं।

हमारे देश की संस्कृति, सभ्यता और धर्म से वट का गहरा नाता है। वट वृक्ष को एक ओर शिव का रूप माना जाता है तो दूसरी ओर पद्म पुराण में इसे भगवान विष्णु का अवतार कहा गया है। इसलिए स्वरवती महिलाएं ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा और अमावस्या को व्रत धारण वट वृक्ष की पूजा करती हैं, जिसे वट सावित्री व्रत कहते हैं।

इस दिन महिलाएं वट की पूजा-आराधना तथा परिक्रमा कामना तथा सुख-शांति के लिए भी करती हैं। इस दिन वटवृक्ष को जल से सींचकर में सूत लपेटते हुए उसकी 108 बार परिक्रमा की जाती है। पुराणों में लिखा है कि वटवृक्ष के मूल में भगवान ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और अग्रभाग में महादेव का वास होता है।


इस प्रकार इस पवित्र वृक्ष में सृष्टि की रचना, पालन और संहार करने वाले त्रिदेवों की दिव्य ऊर्जा का अक्षय भण्डार उपलब्ध है। ऐसी मान्यता है कि वट सावित्री पूर्णिमा के दिन पूजा-आराण करने से सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है। कुछ क्षेत्रों में ज्येष्ठ पूर्णिमा को वट पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है जो कि वट सावित्री व्रत के समान होता है।

प्राचीन ग्रंथ वृक्षायुर्वेद में बताया गया है कि जो यथोचित रूप से बरगद के वृक्ष लगाते हैं, वह शिव धाम को प्राप्त होता है। धार्मिक दृष्टि से तो वट का महत्व ही है, चिकित्सा की दृष्टि से भी बरगद बहुत उपयोगी है।


* आयुर्वेदिक मत से वट वृक्ष के सभी भाग कसैले, मधुर, शीतल और आंतों का क्षरण करने वाले होते हैं।

* कफ, पित्त आदि विकार को नष्ट करने के लिए इसका प्रयोग होता है।

* वमन, ज्वर, मूर्च्छा आदि में इसका प्रयोग लाभदायक है।

* यह कांति प्राप्त है।

* इसके छाल और शरबत से शरबत भी बनाई जाती है।

* Vat Savitri Vrat पूर्णिमा के दिन किसी उचित ब्राह्मण चिह्न किसी व्यक्ति को अपने श्रद्धानुसार दान-दक्षिणा देने से पुण्यफल प्राप्त होता है तथा प्रसाद में चने व गुड का वितरण करने का महत्व है।


आइए जानते हैं सुख-समृद्धि और अखंड स्वर देने वाले वट वृक्ष की धार्मिक विशेषताएं -

* पुराणों में यह स्पष्ट है कि वट में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है।

* वट पूजा से जुड़े धार्मिक, वैज्ञानिक और व्यावहारिक पहलू हैं।

* वट वृक्ष ज्ञान व निर्माण का प्रतीक है।

* भगवान बुद्ध को इसी व्रत के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था।

* वट एक विशाल वृक्ष है, जो पर्यावरण की दृष्टि से एक प्रमुख वृक्ष है, क्योंकि इस वृक्ष पर कई सारे और कणों का जीवन बना रहता है।

* इसकी हवा को शुद्ध करना और मानव की आवश्यकताओं की पड़ताल में भी भूमिका है।

*धार्मिक दृष्टि से देखें तो वट वृक्ष दीर्घायु व अमरत्व के बोध के संबंधियों को भी स्वीकार किया जाता है।

* वट सावित्री में भिक्षुओं द्वारा वट यानी बरगद की पूजा की जाती है।

* इसके नीचे ग्रंथ, व्रत कथा आदि सुनने से मनोकामना पूरी होती है।

* वट पूजा का पूजन और सावित्री-सत्यवान की कथा का स्मरण करने के विधान के कारण ही यह व्रत वट सावित्री के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

*धार्मिक मान्यता है कि वट पूजा की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और अखंड भक्ति देने के साथ ही हर तरह के कलह और संताप मिटाने वाली है।


  

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