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।।मेरी कुछ सवाल कविता के रूप में है ,

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                  कविता


 ।।मेरी कुछ सवाल कविता के रूप में है , 

जिज्ञासा है आप उत्तर जरूर दीजिएगा।।

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मृत्यु के बाद.........

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आज जी रहे है जीवन
ख़्वाब पूरे होने के लिए
सारे ख़्वाब पूरे हो जाएंगे
जी रहे है इसी उम्मीद में
पर क्या सोचा है ,

जीवन भी कुछ पल का है
या फ़िर कुछ सालों तक का
लोगों से आपकी मोहब्बत
साथ रहेगी हमेशा के लिए
पर ईर्ष्या किस बात की 
इस नश्वर शरीर में इतना

कुछ बचेगा नही इस काल मे
बचेगी आपकी महानता के चर्चें
द्वेष, जलन ,रसूख चिता में जलेगी

इस दौरान मैने देखी एक लाश 
जो बिल्कुल शांत और शिथिल
बिल्कुल मानो एक बच्चा हो
जो बिल्कुल अपनी नींद में है
पर ये थी मृत्यु के बाद की स्थिति

मन में आ रहे थे कई लाख सवाल
जीवन इसी तरह की होती है ,ना
आप अगर अच्छे कर्म करते है तो
आपकी हर जगह जय जय होगी
थोड़ी सी कमी भी महसूस करेंगे 
जब उस काम में आप थे महारत
 
आप मृत्यु के बाद कहाँ जाएँगे
 ये सवाल सबके मन में नही रहता
 या जो मरता है , क्या सोचता होगा
 भले ही अटपटा सा सवाल हो ये
मेरी बातों में  भी हँसी आ जाए पर
पर जो जीवन को छोड़ गए  वो .......
 मृत्यु के बाद कौन सा जीवन जीते है?
आत्मा , अगर होती है तो किस रूप में?
क्या बिता हुआ जीवन याद रहता होगा?
क्या वो हमें महसूस करते होंगे कभी?

मृत्यु एक सच्चाई है ये जानता हूँ मैं 
पर मृत्यु के बाद.......
जो इस दुनिया को छोड़ देते है
तो कौन सी दुनिया होती होगी ?
सवाल आपको मूर्खतापूर्ण लगे
पर ये सवाल मेरे है आपसे ..
मृत्यु के बाद का सफ़र कैसा होता है ?

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पर्यावरण दिवस पर मेरी कविता 
जो कुछ बोलना चाहती है
सूखे पेड़ की जुबानी






पेड़ कुछ कह रहा है
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सुबह- सुबह जाता हूं टहलने को
खुद को ऊर्जावान करने के लिए
पहले इस पेड़ से कई बार मिला 
शायद बार- बार गुज़रा हूँ जगह से
पर आज लगा उसे कुछ कहना था
रोक मुझे बात करने को था आतुर
 मैंने भी सहर्ष स्वीकार किया ...
अपने पैरों को रोक ठहर सा गया
अचानक किसी ने आवाज दे पुकारा
कोई कुछ तो कहना चाहता है मुझसे
आवाज सुन सामने से वो बोल उठा
मैं पेड़ हूं इस जगह में अकेला खड़ा
कई वर्षों से सबको आराम देता रहा
आज भी उसी तरह तटस्थ हूँ यंही पर
कभी मेरे नीचे लोग छाँव पर बैठे रहते
कभी नीचे बैठ सुनाते थे ये परेशानियां
कभी ख़ुशी और गम से भी रूबरू हुआ
पर आज मैं अकेला सा हो गया हूँ यँहा
कोई आता नहीं और कुछ कहता नही
शायद मैं सजीव होते हुए भी हूं निर्जीव
मुझे दुःख होता है अपने अकेलेपन का
बिल्कुल तुम्हारी तरह जब होते हो अकेले
तुम तो सुना देते हो अपनी बातें करीबी को
मैं नही सुना पाता ख़ुद का दर्द और वो बातें 
जो वर्षों से सह रहा हूं यँहा अकेला खड़ा
मुझे भी साथ चाहिए बिल्कुल तुम्हारी तरह
पर मैं जानता हूँ कि मैं बोल नही सकता 
पर मैं महसूस तो तुमसे ज्यादा करता हूं
मूझे पेड़ होने का बहुत गर्व रहा है हमेशा
पर आखिर में क्यों काट दिया जाता हूं .
पता है सबको मर जाना है यँहा एकदिन
पर मौत तो तुम्हारे और हमारे हाथ नही
इतना कह कर पूरा टूट चुका था सामने
मैंने पहली बार महसूस किया उसका दर्द
और उसकी व्यथा और उससे जुड़ी बातें
आज सीखी एक चीज़ की सब अपने है
सिमट कर रह गए है हम अपने चारों ओर
जाते जाते मैंने उससे कह दिया एक बात
तुम्हारी पहचान हमसभी से अलग है आज
क्योंकि तुमने तूफ़ान, और वर्षा को झेला 
तुमने कभी वज्रपात का दुःख भी सहा 
तुम बिल्कुल एक पिता की तरह हो
दर्द अपने कंधे और सुख हमसभी को
मैं रोज बात करूँगा यँहा आकर तुमसे
और तुम्हारे हर एक दौर को सुनाऊँगा
आने वाली पीढ़ी को जो भूल गए है तुम्हें



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