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काला पानी का सजा क्या है ? | काले पानी की सजा कैसे होती है?

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 काला पानी का सजा क्या है ? | काले पानी की सजा कैसे होती है? 

अंग्रेजी हुकूमत के दौरान जब लोगों की रगों में आजादी की चाहत खून बंद कर दौड़  रही थी तो उन्हें सिर्फ 1 ही चीज का शौक था और वह है। काले पानी की सजा अंडमान निकोबार आइलैंड में बनाए गए ऐसा जेल जिसका नाम सुनकर ही लोगों के हाथ पैर कांपने लग जाते थे। 

   



काला पानी का सजा क्या है ? | काले पानी की सजा कैसे होती है? 


वैसे तो इस जेल से जुड़ी कई सारी चीजें आपने पढ़ी और सुनी होंगी। लेकिन क्या कभी आपने सोचने की कोशिश की है कि देश को आजाद कराने के लिए जो फ्रीडम फाइटर्स अपनी जान तक देने को तैयार थे। वह वाला काला पानी की सजा से क्यों डरते थे और क्यों वहां पर एकजुट होकर अंग्रेजो के खिलाफ नहीं जा पा रहे थे। 


ऐसी कौन सी वजह थी कि काला पानी की सजा आज भी न सिर्फ भारत में बल्कि दुनिया भर में बदनाम है। आज इन सभी सवालों से पर्दा उठने वाले हैं। बस पोस्ट में इसी तरह बने रहिए ।  


काला पानी का सजा क्या है ? | काले पानी की सजा कैसे होती है?

दोस्तो ये कहानी शुरू होती है। 18 सो 57 से जब पहली बार हिंदुस्तान में अपनी आजादी के लिए अंग्रेज सरकार के खिलाफ युद्ध रचा था । इस युद्ध में जीत तो अंग्रेजो की हुई थी लेकिन हिंदुस्तानियों के मन में लगी आजादी की चिंगारी को देखकर अंग्रेजों के मन में डर बैठ गया था । या फिर कह लीजिए उन की फट कर हाथ  में आ गई थी।


काला पानी का जेल क्यो बनाया गया था ? 

ओर वो ये सोचने लगे थे । कि अगर भारत के लोग इसी तरह बगावत करते रहेंगे तो हमें अपना बोरिया बिस्तर लेकर भागना पड़ेगा। इसलिए भारत वासियों के अंदर से आजादी की चिंगारी को कम करने के लिए यह जेल बनाई गई ताकि लोगों के दिलों में जेल का डर बैठ जाए और यह जेल भारत से दूर हो । 


अंडमान निकोबार दीप समूह में कौन सा जेल है?

ताकि कि एक बार जो यहां चला जाए । उसके बाद में कोई स्वीकार ना करें जी हाँ दोस्तों पुराने जमाने में माना जाता था जो इंसान अपनी जमीन छोड़कर समुद्र पार करता है। वह छूट हो जाता है जिसके बाद उसे धर्म जाति और समाज से बेदखल कर दिया जाता था और हम सभी को पता है कि काला पानी की सजा यानी सेलेउवर जेल अंडमान निकोबार आईलैंड की कैपिटल सिटी पोर्ट ब्लेयर में बनाया गया था ।


यानी जो भी कैदी यहां लाए जाते थे वह सभी अपने जमीन को छोड़कर समनुद्र के रास्ते यहाँ आते थे । जिसके चलते उनका धर्म और जाति उनसे छूट जाता था। उनके अपने ही लोग एक ही पल में उनसे पराए हो जाते थे और इसी वजह से सेल्यूलर जेल को काला पानी का नाम भी दिया गया। 


अंडमान को काला पानी क्यों कहा जाता है?

काला पानी की सज़ा से  पहले हिंदुस्तान में जितने भी लोग अंग्रेजो के खिलाफ जाते थे। अंडमान आईलैंड के पास वाईपर आईलैंड में भी दिया जाता था। जहां पर ब्रिटिश सरकार जैन टेक्निक आजमाती थी । जिसमें 50 कैदियों के एक पैर को एक चैन से बांध दिया जाता था ताकि लोग भागने की कोशिश ना करें और इसी चैन को पहनाकर ब्रिटिश कैदियों से पत्थर तोड़ आते थे ।


काले पानी की सजा किसने और कब शुरू की?

लेकिन जैसे-जैसे समय का पहिया चलने लगा । वैसे वैसे लोगों के दिलों में आजादी के लिए उम्मीद बढ़ने लगी । जिसकी वजह से ही वाईपर आईलैंड में कैदियों की गिनती लगातार बढ़ती जा रही थी जिसके बाद दोस्तों अगस्त 18 से 89 में जब चार्ज एमसूलाइड को ब्रिटिश राज्य का नया होम सिक्योरिटी बनाया गया तब उसने यह सोचा क्यों ना एक ऐसी चीज बनाई जाए ।


जिसका नाम सुनकर ही लोग आजादी का ख्याल तो छोड़िए आपने आप तक को भूल जाए क्योंकि आजादी के लिए लड़ाई लड़ने वाले लोगों के अंदर ना ही ये वाइपर जेल का खौफ था। ना ही बिरादरी से अलग होने का डर तो सिर्फ आजादी चाहते थे। यह चीज अंग्रेजों की बहुत बड़ी मुश्किल बन रही थी ।


जिसके बाद अंडमान निकोबार आइलैंड के पोर्ट ब्लेयर सेलुलर जेल बनाने का ख्याल अंग्रेजों के मन में आया जहां कैदियों को मौत से भी बदतर सजा दी जाएगी। अंग्रेज इस जेल को ऐसा बनाना चाहते थे कि अगर कोई कैदी जेल से निकलकर भाग ना चाहे तो वह कंफ्यूज हो जाए कि आखिर उसे जाना का है। 


ऊपर से अगर कोई जेल से भाग ने या फिर कोई भी उल्टी-सीधी हरकत करने की कोशिश करें। तो बीचो बीच में ऐसा टावर बनाया जाए। जिसकी मदद से जेल के हर कोने पर नजर रखी जा सके। इसे स्ट्रक्चर को दिमाग में रखकर वाईपर जेल के कैदियों में मजदूरी कराते हुए 1896 में सेल्यूलर जेल बनाने की शुरुआत हुई है ।


अंडमान निकोबार दीप समूह के जेल में कैदियो के साथ क्या करता था ? 


जिसे बनने में पूरे 10 साल लग गए और फिर कहानी शुरू हुई। काला पानी की सजा कि जब आपको पता हो कि काला पानी की सजा में इंसान हर पल मौत का अनुभव करता है तो भला कोई इस भयानक सजा से कैसे ना डरे । या कैदियों को अलग-अलग और छोटे साइज के room में रखा जाता था ।


जिसका साइज हमारे घरों में बनने वाले बाथरूम से भी छोटा था और इन छोटे-छोटे सेल में कैदियों को दो मटके दिए जाते थे। एक में पानी पीने के लिए था। दूसरा धुलने के लिए और उस पानी को कैदी टॉयलेट वगैरा में इस्तेमाल करते थे। लेकिन कैदियों का दिमाग तो तब खराब हो जाता था जब उन्हें पता चलता था कि जिस जगह उन्हें अपना मल मूत्र करना है ।


उसी के बगल में रहना और सोना भी है। यहां तक कि खाना भी उसी गंदगी के बगल में बैठ कर खाना होता था । क्योकि उस छोटे से सेल में उन्हें सब कुछ करना होता था जिसकी वजह से कैदी ना सिर्फ शारीरक रूप से कमजोर हो रहे थे बल्कि इस तरह की दुर्गति उन्हें मानसिक रूप से भी तोड़ देती थी। 


ऐसे में कई कैदियों की जान चली जाती थी। लेकिन दोस्तों कैदियो कि जान केवल वहां के खराब वातावरण के वजह से नहीं जाती थी बल्कि oil माइनिंग भी कैदियों की मौत का एक बहुत बड़ा कारण था जो ऑयल माइनिंग करते थे। उनके बदन में उतने ही कपड़े होते थे जिससे उनके प्राइवेट पार्ट Cover हो जाए ।


काला पानी का सजा क्या है ? 

और ऊपर से हाथ में हथकड़ियां बांध वो पूरा दिन एक बड़ी सी चक्की घुमाते थे ताकि उसके प्रेशर से तेल निकाला जा सके। हर कैदी को तेल निकालने का टारगेट दिया जाता था जो की बहुत ही मुश्किल था । और टारगेट पूरा करने के लिए चक्कर मे कैदियों को खून पसीने निकल जाते थे । 


खेर फिर जो कैदी Target पूरा नहीं कर पाते थे। उन्हें बर्फ की  सेल्ट पर सुलाकर चाबुक से उन पर वार किया जाता था। कुछ कैदियों को कड़ी धूप में लोहे की Steel पर हथकड़ियों से टांग दिया जाता था। कैदियों के मुश्किल यही पर खत्म नही होती क्योंकि जो दूसरा मुश्किल काम था ।


काला पानी जेल में कितने कैदी हैं


वह सूखे हुए नारियल के भुसो से फैब्रिक निकालने का था और इस तरह का काम दीवान सिंह फजले, हक योगेंद्र शुक्ला, मौलाना अब्दुल्लाह, बटुकेश्वर दत्त सोहन सिंह नंद, गोपाल जैसे दूसरे पॉलीटिकल फ्रीडम फाइटर को दिया जाता था क्योंकि अंग्रेजी दिखाना चाहते थे कि यह लीडर्स लकड़ी पर हथोड़े से वार करके ना सिर्फ  नारियल तोड़ रहे हैं ।


बल्कि अपने आजादी के सपने को भी चकनाचूर कर रहे हैं और जब लीडर्स अपने दिये हुए ।  टारगेट को समय पर नहीं पूरा कर पाते थे। तो उस रात उन्हें सेल्स की बजाय बाहर दीवारों पर लटका दिया जाता था। इसके अलावा भी जेल में कारपेट बनाने से लेकर गटर साफ करने  बहुत सारे काम करवाए जाते थे ।


और अगर कोई बंदा अपने काम को थोड़ी देर में कर रहा है या फिर उससे काम नहीं हो पा रहा। तो उसके पर चाबुक की बरसात होने लगती थी यहाँ तक की कुछ अंग्रेजी जेलर इतना ज्यादा स्वार्थी थे कि कैदियों के शरीर पर उबला हुआ पानी फेंक देते थे। 


यहाँ हमे पता है । ये सारी चीज़ें सुनकर आपको विश्वास नहीं हो रहा होगा। पर दोस्तों यकीन मानिए । सारी चीजें वहां के खाने के सामने कुछ भी नहीं थी। पूरे दिन जानवरों की तरह काम करवा कर अंग्रेज सरकार कैदियों को खाना भी जानवरों वाला ही देती थी और हमें बात हवा में नहीं कह रहे बल्कि काला पानी की सजा के दौरान कैदियों को जंगली घास का पानी और कंकड़ पत्थर से भरे हुए चावल दिए जाते थे। 


काला पानी जेल में कितने लोगों की मौत हुए थे ? 

ऐसा खाना खाने की वजह से कई कैदियों ने अपना दम तोड़ दिया। अब आप सोचेंगे काला पानी की सजा काट रहे कैदी फ्रीडम फाइटर थे।  तो फिर उन्होंने अपने साथ हो रहे इन अत्याचारों के खिलाफ कभी आवाज क्यों नहीं उठाई तो दोस्त ऐसा हो ही नहीं सकता कि कैदियों ने आवाज नहीं उठाई हो 


12 मार्च 1933 को क्या हुआ था ? 


या तक कि 12 मार्च 1933 में भगत सिंह के साथ ही बटुकेश्वर दत्त के कहने पर जेल की हंगर स्ट्राइक शुरू कर दी जो सिर्फ इतना ही चाहते थे कि अंग्रेज सरकार उन्हें अच्छा  खाना और साफ-सुथरी टॉयलेट करने की जगह दें। लेकिन अपने साथ हो रहे अत्याचारों का विरोध की वजह से उन्हें मौत का सामना करना पड़ा। 


ये उन्हें नही पता था क्योंकि जब जेल में कैदी अच्छा खाना ओर बाथरूम की सुविधा के लिए अनशन पर बैठे तो शुरुआत के 45 दिनों तक अंग्रेज सरकार ने उन पर ध्यान तक नहीं दिया। लेकिन 45 दिनों बाद जब ब्रिटिश ऑफिसर और सात से आठ कैदियों को उठा ले गए। 


जिसके बाद उनके साथ कुछ ऐसा हुआ जिसके बारे में सुनकर किसी के भी रातों की नींद उड़ जाएगी। उन पत्थर दिल ऑफिसर से पहले तो सभी कैदियों को एक जगह पर लिटा दिया और उनके हाथ पैर बांध दिए जिसके बाद डॉक्टर के एक टीम आये । 


जिन्होंने जबरदस्ती कैदियों को खाना खिलाया । जिसके लिए डॉक्टर ने कैदियों की नाक में एक लंबी सी ट्यूब डाली । जिसमें दूध शक्कर अंडे का जूस मिला था और जब कैदियों ने ट्यूब को निकालने की कोशिश की तो डॉक्टर उसको कैदियों की नाक में और ज्यादा अंदर तक डालने लगे 


काला पानी जेल में सहीद हुए कैदियों का नाम ? 

जिसकी वजह से कैदियों की नाक से खून तक बहने लगता था और इन्हीं सब चीजों के दौरान महावीर सिंह मोहन, किशोर रामदास और मोहित मोइत्रा शहीदों हो गए । क्योंकि जबरदस्ती पिलाए जाने के कारण वो जुश  उनके फेफड़ों में जा घुसा । लगातार लोगों की जान जाने की वजह से बटुकेश्वर दत्त ने स्ट्राइक खत्म कर दी। 


ठीक इसी तरह  जितनी बार कैदियों ने यहां से भागने और विरोध करने की कोशिश की। उतनी बार मौत की लाशें बिछी क्योंकि अंग्रेजी सरकार को फ्रीडम फाइटर्स की जान से कोई मतलब नहीं था। वह तो बस सिर्फ इतना चाहते थे कि लोगों के दिलों में ब्रिटेश का खौफ बना रहे जिसमें वह काफी समय तक कामयाब भी रहे। 


काले पानी की सजा कब समाप्त हुई


लेकिन बाद में जापानियों ने ब्रिटिश को इसी जेल के अंदर बंद करके ठीक उसी तरह परेशान किया। जिस तरह ब्रिटिश ने भारतीयों को किया था और आज आजादी के इतने सालों बाद अंडमान निकोबार आईलैंड में बने साइलेंट को म्यूजियम में कन्वर्ट कर दिया गया है। 


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