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अच्छे लोगों की मृत्यु जल्दी क्यों हो जाती है


मित्रो यह एक सवाल है कि अच्छे लोगों की मृत्यु जल्दी क्यों हो जाती है । अक्सर यह देखा जाता है कि अच्छे से और धर्म से चलने वाले लोगों की मृत्यु अक्सर जल्दी ही हो जाती है । शास्त्रों में तो बताया गया है कि कलयुग में लोगों की उम्र 30 साल ही रह जाएगी और कलयुग का अंत होते होते आपने यह भी सुना होगा कि भगवान अच्छे लोगों को जल्दी बुला लेते हैं ।

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कर्मो के कारण मृत्यु

यह फैसला तो भगवान ही करते हैं कि किसकी उम्र कितनी है। आप यह कहावत भी जरूर सुनेंगे कि जितनी चाबी भरी राम उतनी ही तमाशा करते हैं। दोस्तों इस कहावत से साफ हो जाता है कि किसकी मृत्यु कब होती है, यह भगवान ही तय करते हैं। वैसे तो अच्छे लोगों की मौत जल्दी हो जाने के पीछे कई कारण होते हैं लेकिन पहले कारण को समझने के लिए आपको यह जानना होगा कि हम जो कुछ भी इस जन्म में करते हैं उसका जवाब हमें ऊपर यमराज को देना होता है।

यदि उसका पाप का पलड़ा भारी होता है तो उसे नर्क में तपस्या काटनी पड़ती है और यदि पुण्य का पलड़ा भारी हो तो उसे स्वर्ग का सुख मिलता है और यही चक्र कई युगों तक चलता रहता है। जब तक उसे मोक्ष की प्राप्ति नहीं होगी। इस मृत्युलोक में हर कोई अपने छोटे से कम के लिए आता है।




अच्छे लोगों की मृत्यु जल्दी क्यों हो जाती है

कोई आत्मा इंसान बनता है तो कोई जानवर के शरीर में प्रवेश करता है ये उसके संबंधित कर्मों के आधार पर ही तय होता है। इसके अलावा उनके जन्म देने वाले माता पिता के संस्कार भी उनके अंदर आते हैं। इसके बाद वो जो कर्म करेगा उसके होश से उसे पुण्यात्मा या फिर दुरात्मा कहा जाता है।

अब यही पुण्य आपकी मृत्यु की तारीख को भी बदल देते हैं। जिस तरह से एक जज जेल में रहने वाले कैदी के व्यवहार को देखकर उसकी सजा कम कर देता है, ठीक उसी तरह भगवान भी देखते हैं कि इंसान मौत में जाने के बाद अच्छा कर्म कर रहा है और उसे अपने किए की सजा मिली है। और जब उन्हें लगता है कि अब उसे मृत्यु लोक में नहीं रहना चाहिए तब वह उसे बुला रहे हैं।

अच्छे लोग अपने पाप का फल जल्दी ही काट लेते हैं

भगवान के विधान के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को केवल इतना ही दण्ड दिया जाना चाहिए जितना कि पाप किया जाता है। अब क्योंकि अच्छे लोगों के पाप कर्म बुरे लोगों के पाप कर्मों की तुलना में अधिक होते हैं इसलिए अच्छे लोग अपने पापों का फल जल्दी ही कम लेते हैं।

हिन्दू धर्म की मान्यता है कि भगवान हर अच्छे व्यक्ति को किसी ना किसी उद्देश्य के साथ मृत्युलोक में मान्यता देते हैं और भगवान का अपना अवतार लक्ष्यों में शामिल होता है। इसीलिए जब वो उद्देश्य जल्दी हो जाते हैं तब भगवान उन्हें वापस बुला लेते हैं। अच्छे लोगों की मौत उनके अच्छे कर्मों पर ही लगातार करती है।

इसके अलावा आपको ये भी बताते हैं कि जो लोग ये कहते हैं कि मरने के बाद इंसान खाली हाथ जाता है उन्हें जान लेना चाहिए कि तीन चीजें ऐसी हैं जो मरने के बाद भी उनके साथ जाती हैं। एक हैं विशिष्ट कर्म, दूसरा है स्मृति और तीसरा है जाग्रत। इसीलिए अब आप किसी से ये मत कहना कि आप खाली हाथ आए थे और खाली हाथ छोड़ देंगे 

मानव जीवन का उद्देश्य

इसकी वजह है मनुष्य में सत्य एवं असत्य का विवेकी हमारी बुद्धि का होना। लेकिन इस धरती पर हम दुनियादारी के चक्र में कुछ इस तरह फस जाते हैं कि हमारी बौद्धिक सीमा में ही सिमटकर रह जाती है। हम सब कुछ अंतर्निहित सुखों को ही मानक सब कुछ मानते हैं

यही गलती हम कर जाते हैं क्योंकि इसके बावजूद कोई भी व्यक्ति यह दावा नहीं करता कि वह पूरी तरह से सुखी है। सच्चाई यह है कि हमें सामान्य मानव जीवन के उद्देश्य का पर्दाफाश करने के लिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए। यह सच है कि आपके और आपके परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी हमारी है और हमें इसे हर हाल में निभाना चाहिए।

लेकिन क्या आप यह समझ पाते हैं कि आप कितने दिनों तक या कितने सालों तक इस जगत में बने रहते हैं और आपकी मंजिल बन जाती है? तो इनकार्ड के उत्तर में ज्यादातर लोग यही कहते हैं कि पता नहीं ऐसे लोग बड़े ही अजीब होते हैं। वो यात्रा तो कर रहे हैं पर यात्रा के संबंध में उन्हें कुछ जानकारी नहीं होती।

क्या आपने कभी एकांत में यह सोचा है कि आपका यह मानव जीवन क्यों मिला है? तो दोस्तो महाभारत में युधिष्ठिर महाराज के एक प्रश्न के उत्तर में भीष्म पितामह ने कहा था कि किसी से बढ़ कर कोई भी जीव नहीं है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि चौरासी लाख योनियों के बाद हम मनुष्य जीवन से मिलते हैं और संसार के सभी प्राणियों में मनुष्य ही सबसे श्रेष्ठ है।

मित्रो धर्म कोई सा भी क्यों ना हो, हर किसी में यही बताया गया है कि जिसने इस धरती पर जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है और अगर बात सनातन धर्म की करें तो इसकी एक मान्यता के अनुसार बच्चे के जन्म की छठी रात ही ब्रह्मा जी उसकी किस्मत लिख देते हैं जिसमें उसके आनेवाले कल जैसे विवाह, पढ़ाई, नौकरी यहाँ तक की मृत्यु की तारीख तक शामिल होती है ।

इसी तरह दोस्तों श्रीमद्भगवद्गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि ये एक अध्यात्मिक और ईश्वरीय जीवन का पद है जिसे प्राप्त करके मनुष्य मोहित नहीं होता । यदि किसी जीवन के अंतिम समय में भी इस तरह की स्थिति में हो तो वह भगवद्धाम में प्रवेश करता है। मनुष्य कृष्णभावनामृत या दिव्य जीवन को एक क्षण में तुरंत प्राप्त कर सकता है और हो सकता है कि उसके लाखों जन्मों के बाद भी यह प्राप्त न हो।



दोस्तो यह तो सच को समझने और स्वीकार करने की बात है। भगवत गीता कहती है कि वास्तविक जीवन शुरू किया गया यह उद्यम जीवन के साथ होता है। दोस्तो इन बातों से यह तो स्पष्ट होता है कि हम सभी एक निश्चित समय के लिए पृथ्वी पर रहने वाले सभी लोग आते हैं और कुछ विशेष कर्मों को करने के लिए आते हैं।



जब हमारे कर्म पूरे हो जाते हैं और इस जीवन के लक्ष्य प्राप्त हो जाते हैं, तो प्रभु हमें परलोक में एक सहज स्थान प्रदान करते हैं। भगवान कृष्ण और अन्य कहते हैं कि वास्तविक जीवन तब शुरू होता है जब यह भौतिक जीवन समाप्त हो जाता है। मित्रों, जो लोग सदाचारी होते हैं और जीवन में अच्छे कर्म किए होते हैं, वे वास्तव में विशेष होते हैं। जब उनकी मृत्यु का समय निश्चित हो जाता है, तो दोस्तों वे इस दुनिया को छोड़कर आगे की यात्रा जारी रखते हैं।



अच्छे लोगों के साथ बुरा क्यों होता है


मित्रो आपने देखा होगा कि पूजा पाठ और धर्म कर्म करने वाले लोगों की जिंदगी बुरे कर्म करने वालों की तुलना में काफी कठिन है। आपने यह निश्चित रूप से सोचा होगा तो आप इसके रहस्य कथनों को खोलेंगे।


आपके पुराणों में वर्णित एक कथा असंख्य हैं जिसके माध्यम से आप समझेंगे कि प्रत्येक प्राणी को उसके कर्म के अनुसार ही फल मिलता है। अगर कोई अच्छा कर्म करता है तो उसे अच्छा फल मिलता है और अगर कोई बुरा कर्म करता है तो उससे दुःख मिलता है।



श्री कृष्ण ने कहा कि एक गांव में दो आदमी काम कर रहे थे। उनमे से एक बड़ा ही धार्मिक था और रोज मंदिर जाता था और भगवान की पूजा करता था। लेकिन दूसरा आदमी नास्तिक था और वह भी रोज मंदिर गया था और वहां से उसने जूते चप्पल और दाल पति से पैसे चुरा लिए थे।


एक दिन उस गांव में बहुत जोर की बारिश हो रही थी और उस समय मादिर में पुजारी के अलावा और कोई नहीं था। नास्तिक वाला मंदिर गया और उसने तुरंत ही सारा धन चुरा लिया और वहां से चला गया। उसी समय आस्तिक वाला आदमी भी मंदिर गया और भगवान की पूजा करने लगा।


उसी समय मंदिर के पुजारी ने उसे देख लिया और उसे ही चोर समझ लिया। गांव के बाकी लोग भी आ गए और बचकर निकल गए। रास्ते में वह एक बार टकराया और घायल हो गया। आस्तिक व्यक्ति को वह व्यक्ति मिला जिसने मंदिर में चोरी की थी।


करोणों कल्प जाने पर भी पाप कर्म का बिना भोगे नाश नहीं होता

कुछ समय बाद दोनों व्यक्तियों की मृत्यु हो गई और वहां आस्तिक व्यक्ति ने यमराज से पुछा कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। यमराज ने कहा कि जिस दिन तुम पर झूठा आरोप लगाया गया था उस दिन तुम्हारा जीवन समाप्त हो गया था लेकिन तुम्हारे द्वारा किए गए अच्छे कर्मों के कारण तुम बच गए।


यमराज ने कहा कि दूसरी ओर किसी व्यक्ति के भाग्य में एक राजा बनना लिखा था, लेकिन उकेसे पाप कर्मों के कारण वह एक मामूली चोर बना रहा।


मित्रो दूसरे और शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि करों कल्प अनुमान जाने पर भी पाप कर्म का बिना भोगे नाश नहीं होता। इसलिए जो व्यक्ति पाप करता है वह हो सकता है कि आज खुश हो लेकिन उसे अपने पाप का फल कभी नहीं तो कभी छोटा नहीं मानता।


इसी तरह से एक कहानी यह भी है कि एक बहुत ही ज्यादा पापी व्यक्ति एक रास्ते से जा रहा था और वहां बहुत सारा सोना मिल गया और जब उसी रास्ते से एक अच्छा और धर्मात्मा व्यक्ति जा रहा था जिसे कांटा लग गया और वह जोर से जमीन पर गिर गया।


वहां के कुछ लोगों ने सोचा कि यह तो बड़ा गलत हो गया और फिर वे दोनों आदमियों का चक्कर ले गए एक पंडित को दिखाई दिए। पंडित जी ने बताया कि वह जो पापी व्यक्ति है उसकी नियति में राजा बना था लेकिन उसके द्वारा पाप के कारण उसे इतना सोना ही केवल मिल पाया है।


दूसरी ओर, भले ही किसी भी धर्मात्मा के जीवन का आज आखिरी दिन था, लेकिन उसके द्वारा अच्छे कर्म किए गए, क्योंकि उसे केवल एक कांटा ही लगा और वह बच गया।


क्या अच्छे कर्म करके बुरे कर्मो के फल से बचा जा सकता है

शास्त्रों में बताया गया है कि व्यक्ति को अपने अच्छे और बुरे कर्मों के फल अवश्य ही पढ़ने वाले होते हैं। अच्छा कर्म करने से अच्छा फल मिलता है और बुरा कर्म करने से बुरा फल मिलता है। हमें अच्छे और बुरे दोनों कर्मों के फल भोगने वाले हैं।


भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि कर्म की गति आसान नहीं है। इसका मतलब यह है कि यह फाइल बड़ी मुश्किल है कि हममें से कौन जन्म से कर्म करेगा और कौन जन्म में हमें उसका फल मिलेगा।



हो सकता है जिस पाप के कारण आज आपके साथ बहुत बुरा हुआ कि आपने हजारों जन्म पहले किए हो। इसके अलावा हो सकता है कि आपने कोई पाप अनजाने में किया हो जिसके बारे में आपको कुछ पता ही न हो।


क्या धोखे से सबसे नए पाप कर्म का फल मिलता है

कर्म का सिद्धांत अचूक है। यदि आप कोई गलत कर्म करते हैं तो आपको उसका फल अवश्य मिलता है चाहे आप उसे जान-बूझकर या अनजाने में


शास्त्रों में एक बहुत ही अच्छा उद्हारण देखने को मिलता है जो यह है कि अगर आप अनजाने में छुए तब भी आपका हाथ तो जलेगा ही।



शास्त्रों में ऐसी कई कहानियाँ इसी तरह से होती हैं कि अनजाने में अनजाने में पाप का फल भी लोगों को मिल जाता है। एक कहानी है पांडवों के पिता महाराज पांडु की जिन्होंने एक हिरण को तीर मार दिया। वे उस समय नहीं जानते थे कि एक ऋषि ने हिरण का रूप धारण किया था और ऋषि ने उन्हें श्राप दिया था जिसके कारण आगे चलकर उनकी मृत्यु हो गई।


सहस्त्रों के अनुसार क्षत्रिय राजाओं को शिकार करने की छूट है और हिरण को गिराना कोई पाप नहीं था लकिन पाण्डु यह नहीं जानते थे कि हिरण के रूप में वे एक ऋषि हैं जिनके कारण वे इतने भयंकर श्राप मिले कि उनकी मृत्यु हो गई।


पाप से बचने का उपाय क्या है


वैसे तो भगवान श्रीमद्भगवद्गीता में कथन हैं कि कर्म और उसके सावन को समझ पाना बहुत ही कठिन है और किसी व्यक्ति को उसके कर्मों के फल अवश्य मिलते हैं। यदि कोई पाप कर्म करता है तो उसका फल अवश्य भोगना पड़ता है लेकिन भगवान श्री कृष्ण श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 18 में कहते हैं कि सभी धर्मों को छोड़कर मेरी शरण में आ जाओ और में जाकर उसे सारे पापों से मुक्त कर दो।



हमारी ज़िंदगी में बहुत से लोग आते हैं, उनमें से कुछ अच्छे होते हैं और कुछ बुरे होते हैं! दोस्तों जो लोग अच्छे होते हैं उनके कर्म भी अच्छे होते हैं! उनकी बातों की वजह से हम उन लोगों को याद करते हैं और बुरे लोगों को हम भूल जाना पसंद करते हैं, लेकिन मैंने अपनी जिंदगी में बहुत से अच्छे लोगों को परेशान होते देखा है, इसके विपरीत बुरे लोग खुश रहते हैं और उनकी अपनी बुराइयां पर कोई प्रतिबंध नहीं होता है! बड़े बुजुर्ग का कहना है! कि इंसान की नियति उसके परिवार के लोगों के द्वारा किए गए कर्मों से होती है इसका सीधा मतलब है कि यदि बुरे व्यक्ति के महत्वाकांक्षी ने अच्छे कर्म किए हैं तो उस व्यक्ति का बुरा को उसका अच्छा फल अवश्य मिलेगा! इसलिए उस बुरे व्यक्ति के साथ वर्तमान में सब कुछ अच्छा होता है और हम मानते हैं कि वह कितना बुरा है और उसके सब अच्छे और ठीक-ठाक होते हैं! लेकिन यह सिर्फ हमारी सोच भर है ऐसा इसलिए होता है कि भूतकाल में उस बुरे व्यक्ति के पूर्वज ने अच्छे कर्म किए होंगे जिसका फल उसे अब मिल रहा है!

विपरीत आपने यह ज्यादातर देखा होगा जो लोग अच्छे कर्म करने वाले हैं वे हमेशा परेशान रहते हैं और उनके साथ कुछ ना कुछ बुरा होता रहता है ! ऐसा इसलिए होता है शायद उस अच्छे व्यक्ति के पूर्वज ने कुछ बुरा किया होगा या अनजाने में किसी का दिल दुखाया होगा जिसके कारण अच्छे व्यक्ति को उसका फल मिल रहा है! लेकिन सबसे बड़ी सच्चाई यह है कि हमेशा हमें ही अपने कर्म अच्छे ही करते रहना चाहिए क्योंकि मनुष्य को अपने कर्मों का फल यही जन्म में हमारे बड़े बुजुर्ग कह गए हैं खुद के लिए किए गए कर्मों से ही इंसान की नियति बनती है जो जैसी होती है ठीक वैसे ही कटेगा !


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