". Karma Puja kab hai. - Hindi me jane

Karma Puja kab hai.

By:   Last Updated: in: ,

 Karma Puja kab hai.

नमस्कार दोस्तों आज हम बताने जा रहे हैं कर्म पूजा कब है और कैसे मनाया जाता है तभी हम आगे हम बात करते हैं करमा पूजा क्यों मनाई जाते हैं।



 Karma Puja kab hai.

करमा पूजा झारखंड के प्रमुख त्यौहार में से एक पर्व है और झारखंड के अलावा उड़ीसा बंगाल छत्तीसगढ़ असम मिजोरम और अनेक राज्य में मनाया जाता है जहां पर ज्यादा आदिवासी समुदाय द्वारा धूमधाम से मनाया जाता है करमा पर्व भादो महीना के शुल्क पक्ष एकादशी के दिन मनाया जाता है इस पर सितंबर MONTH YA FAST AUGUST  का लास्ट में मनाया जाता है इस पर्व को मनाने का उद्देश्य उदय है बहनों द्वारा भाइयों के सुख एवं शांति एवं दीर्घायु की कामना करना है झारखंड के लोगों को परंपरा यही यही रहा धान की रोपाई. के बाद का कर्म पूजा मनाए जाते हैं इसके बाद प्रकृति की पूजा कर रहे फसल की कामना करते हैं झारखंड में प्रकृति के पूजन के प्रारंभ सदियों से है करमा पर्व के अवसर पर क्रम डाली की पूजा भी की जाती है।


कर्मा एक प्रमुख त्यौहार है झारखंड उड़ीसा पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ के लिए मुख्य रूप से यह त्यौहार भादो मांस के एकादशी के दिन और कुछेक स्थानों पर उसी के आसपास मनाया जाता है और मौके पर किसान लोग प्रकृति की पूजा कर अच्छी फसल होने की कामना करती है और भाई बहन अपने भाइयों की सुरक्षा के लिए प्रार्थना करती है करमा पर्व पर झारखंड के लोग ढोल और मंजर और अपना क्षेत्रीय के अनुसार संगीत प्रोग्राम रखते हैं इस अवसर पर श्रद्धालु उपवास के पश्चात कर को नवरात्र देखकर ही उसका उपयोग शुरू होता है कर्म मित्र की नई नीति छत्तीसगढ़ झारखंड लोक संस्कृति की अपना चक्रीय के अनुसार प्रोग्राम करते हैं वह कर्म पूजा का आनंद लेते हैं।

यह दिन देखा जाए कि प्राकृतिक के पूजा का दिन बहुत अच्छा होता है ऐसे में भी सभी उल्लास से भरे होते हैं परंपरा के मुताबिक खेतों में वही गई किसानों फसलों बर्बाद ना हो इसलिए प्रकृति की पूजा की जाती है इस मौके पर किसान लोग पूरे धूमधाम से खेती कर के कर्म पूजा मनाया जाता है क्योंकि कोई भी जो फसल जो लगाए हैं उसी को अच्छा से होने की खुशी और अच्छा हो जाने के लिए प्रमुख पूजा को मनाए जाते हैं इस मौके पर एक बर्तन में बालू भरकर उसे बहुत ही कलात्मक तरीके से सजाया जाता है पर शुरू होने के कुछ दिनों पहले उसमें जो डाल दिया जाता है इसे जोवा कहा जाता है बहनें अपने भाइयों की सलामती के लिए इसे दिन व्रत रखती है इनके भाई कर्मवीर की दाल लेकर घर के आंगन में खेतों में डालते हैं इसे प्रकृति के आराध्य देव को मानकर पूजा करते हैं पूजा समाप्त होने के बाद भी इस डाल को पूरे धार्मिक रीति रिवाज से तालाब या नदी में विसर्जन कर देते हैं।

हम जानते हैं कि कर्म पर बहनों द्वारा भाइयों के लिए मनाया जाता है इसके अलावा अपना भाई की उम्र सही सलामत रहे और साथ-साथ में बहनें अपने भाइयों के सुख समृद्धि और दीर्घायु होने की कामना करती है इस दिन करती है करमा पर्व के कुछ दिन पहले युक्तियां नदी या तालाब में तालाब से बालू उठाकर घर ले आते हैं नदिया तलाब से स्वस्थ एवं महीन वालों उठा कर डाली में भरी जाती है इस डाली में कुछ अनाज जैसे गेहूं मक्का ईंधन और ऊर्जा ना कुलथी आदि और कुछ भी स्वस्थ स्थान पर रखती है जिससे दूसरे दिन से रोज धूप धवन द्वारा पूजा अर्चना करना शुरू कर देते हैं 1 सप्ताह तक उसी तरह रहता है और उक्त आरोपियों को लाकर होकर एक दूसरे के साथ पकड़ कर जवाब लगाने की गीत गाती है प्रत्येक रोज।

पूजा के दिन बहनें एक के वस्त्र पहनकर पैरों में पैरों में सजावट होकर लगकर तैयार रहती है इसके बाद शाम को समय में गांव के बड़े बुजुर्ग नए वस्त्र पहनकर मन अपना भजन कीर्तन और नाचते गाते हुए कर्म पूजा को मनाते हैं वह पहुंचकर कर्म पेड़ का पूरे शारदा से पूजा अर्चना करके पेड़ चढ़कर तीन तालियां काटता है साथ साथ में लेकर फिर से उतरता है जिसमें यह भी ध्यान रखा जाता है कि कर्म डाली जमीन पर नहीं करना चाहिए इसके बाद कर्म तो घर के आंगन में विधि द्वारा गाया जाता है वह ने सजी हुई थाली को लेकर दिल्ली के चारों तरफ अपना पूजा करती है पूजा करने के बाद कर्म कर्म राजा से प्रार्थना करती है कि है कर्म राजा मेरे भाइयों का सुख समुदाय और कुछ तकलीफ ना हो और हमेशा इसका सही रखें रात भर नित करते हुए उत्सव मनाते हैं कि सुबह पास की किसी भी नदी में विसर्जित कर दिया जाता है कर्म डाल को इस अवसर पर एक विशेष गीत भी गाए जाते हैं।।

उपवास

कर्म की पूजा मनाने वाले लोग पनौती मनाने वाले लोग दिनभर उपवास रखकर आपने आगे सके समितियों में उपरोक्त पड़ोसियों के निमंत्रण देता है तथा शाम को कर्म व्हिस्की पूजा कारण रोगियों को लहरी के एक ही बार से कर्मा रिश्तेदार को काटा जाता है उसी को जमीन में नहीं गिना गिना देता है उसको लेकर घर में जाकर अपना भी जंगल में अच्छा से उसको गड़ा जाता है उस्ताद को अखर में डालकर स्त्री पुरुष बच्चे रात भर करते हुए मनाते हैं अपना अनुसार और सुबह पास कि किसी भी नदी में विसर्जित कर दिया जाता है उसे क्या होता है कि कर्म पूजा का जो कर्म डाली होता है उसको कभी किसी तरह नहीं जा सकता इस अवसर पर एक गीत भी गाते।


No comments:
Write comment